डेटा संग्रह के लिए व्हाट्सऐप यूज़र्स की सहमति अनिवार्य, NCLAT का अहम फैसला
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने एक अहम फैसले में कहा है कि व्हाट्सऐप को यूज़र्स का डेटा एकत्र करने से पहले उनकी स्पष्ट सहमति लेना अनिवार्य होगा। यह फैसला डिजिटल प्राइवेसी और यूज़र अधिकारों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ट्रिब्यूनल के इस आदेश से सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स की डेटा नीतियों पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है।
NCLAT ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म को यूज़र्स की निजी जानकारी एकत्र करने, साझा करने या उसका व्यावसायिक उपयोग करने से पहले उनकी जानकारी और सहमति आवश्यक है। ट्रिब्यूनल का मानना है कि यूज़र्स को यह जानने का अधिकार है कि उनका डेटा किस उद्देश्य से, किसके साथ और किस हद तक साझा किया जा रहा है। बिना सहमति डेटा संग्रह करना उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।
यह फैसला उस विवाद की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें व्हाट्सऐप की डेटा शेयरिंग पॉलिसी को लेकर सवाल उठे थे। आरोप था कि व्हाट्सऐप अपने यूज़र्स का डेटा पैरेंट कंपनी और अन्य संबद्ध इकाइयों के साथ साझा करता है, और इसके लिए यूज़र्स की स्पष्ट मंजूरी नहीं ली जाती। इस मामले में पहले भी विभिन्न नियामक संस्थाओं ने चिंता जताई थी।
NCLAT ने अपने आदेश में कहा कि यूज़र की सहमति केवल औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह स्पष्ट, सूचित और स्वैच्छिक होनी चाहिए। यूज़र्स को यह विकल्प मिलना चाहिए कि वे डेटा शेयरिंग को स्वीकार करें या अस्वीकार करें, और इसका उनकी सेवा तक पहुंच पर कोई नकारात्मक असर न पड़े।
डिजिटल अधिकारों से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारत में डेटा प्राइवेसी के लिए एक मजबूत मिसाल बनेगा। इससे न केवल व्हाट्सऐप, बल्कि अन्य सोशल मीडिया और टेक कंपनियों को भी अपनी डेटा नीतियों की समीक्षा करनी पड़ेगी। यूज़र्स के लिए यह फैसला राहत भरा है, क्योंकि इससे उन्हें अपनी व्यक्तिगत जानकारी पर अधिक नियंत्रण मिलेगा।
व्हाट्सऐप की ओर से कहा गया है कि कंपनी कानून और नियामक दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि, कंपनी ने यह भी संकेत दिया है कि वह इस फैसले का अध्ययन करेगी और आवश्यकतानुसार अपने सिस्टम और नीतियों में बदलाव करेगी। आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि व्हाट्सऐप अपनी डेटा नीति को किस तरह संशोधित करता है।
इस फैसले का असर डिजिटल विज्ञापन, डेटा एनालिटिक्स और टेक उद्योग के बिजनेस मॉडल पर भी पड़ सकता है। कई कंपनियां यूज़र डेटा के आधार पर अपनी सेवाएं और विज्ञापन रणनीतियां तय करती हैं। यदि सहमति की शर्तें सख्त होती हैं, तो उन्हें अधिक पारदर्शी और यूज़र-फ्रेंडली तरीके अपनाने होंगे।
कुल मिलाकर, NCLAT का यह आदेश भारत में डिजिटल निजता और उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह फैसला यह संदेश देता है कि टेक्नोलॉजी के युग में भी यूज़र की सहमति और निजता सर्वोपरि है। आने वाले समय में इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं, खासकर सोशल मीडिया और डेटा-आधारित सेवाओं के क्षेत्र में।