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बच्चों के ऑनलाइन डेटा की सुरक्षा: DPDP नियमों के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए अनिवार्य अभिभावकीय सहमति का महत्व।

भारत सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 के तहत डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025 को आधिकारिक रूप से अधिसूचित करके देश में डिजिटल निजता के लिए एक नया अध्याय शुरू कर दिया है। यह ऐतिहासिक कानून अगस्त 2023 में संसद से पारित हुआ था और अब इसके नियमों को जारी कर दिया गया है। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को उनके व्यक्तिगत डेटा पर पूरा नियंत्रण देना और डेटा एकत्र करने वाली कंपनियों (जिन्हें 'डेटा फिड्यूशियरी' कहा जाता है) को अधिक जवाबदेह बनाना है। इन नियमों के लागू होने से ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करने वाले लाखों भारतीय यूजर्स को अपने डेटा की सुरक्षा और उपयोग के बारे में स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा।


इस कानून का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान 'सहमति आधारित' व्यवस्था पर जोर देता है। इसके तहत, कोई भी कंपनी या संगठन आपके व्यक्तिगत डेटा को लेने और प्रोसेस करने से पहले आपको स्पष्ट और सरल भाषा में यह बताएगा कि वे आपका डेटा क्यों ले रहे हैं और उसका क्या इस्तेमाल करेंगे। यूजर्स को यह सहमति देने या न देने का अधिकार होगा और वे अपनी सहमति को किसी भी समय वापस भी ले सकते हैं। यह पारदर्शिता सुनिश्चित करती है कि यूजर्स पूरी जानकारी के साथ अपने डेटा के उपयोग के लिए निर्णय लें। कंपनियों को यह जानकारी भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में उपलब्ध करानी होगी, जिससे भाषा की बाधा दूर हो सके।


डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियमों में बच्चों के डेटा की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है। नए प्रावधानों के अनुसार, सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का अकाउंट बनाने या उनके व्यक्तिगत डेटा को प्रोसेस करने से पहले उनके माता पिता या कानूनी अभिभावक की सत्यापित सहमति लेना अनिवार्य होगा। इस नियम का उद्देश्य बच्चों को ऑनलाइन खतरों और हानिकारक प्रभावों से बचाना है। बड़ी टेक कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूत तकनीकी और प्रक्रियात्मक उपाय लागू करने होंगे कि बच्चे गलत उम्र बताकर सेवाओं का उपयोग न कर सकें। यह बच्चों के ऑनलाइन अनुभवों को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


कानून के उल्लंघन की स्थिति में कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है, जो उन्हें नियमों का सख्ती से पालन करने के लिए प्रेरित करेगा। डेटा सुरक्षा में बड़ी चूक होने पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना हो सकता है। डेटा लीक होने की स्थिति में, कंपनियों को तुरंत यूजर्स और नवगठित 'डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड' को इसकी सूचना देनी होगी। इसके अलावा, यूजर्स को अपने व्यक्तिगत डेटा तक पहुँचने, गलत डेटा को सुधारने, अपडेट करने या उसे मिटाने का अधिकार भी मिलेगा। डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड एक पूरी तरह से डिजिटल संस्था होगी जहां नागरिक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकेंगे। कंपनियों को इन नियमों को पूरी तरह से लागू करने के लिए 12 से 18 महीने का समय दिया गया है, ताकि वे अपने सिस्टम में आवश्यक बदलाव कर सकें।


ये नए नियम भारत के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में विश्वास और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देंगे। यह कानून न केवल यूजर्स की निजता को मजबूत करता है, बल्कि नवाचार और डिजिटल अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन भी स्थापित करता है। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम भारत को वैश्विक स्तर पर डेटा संरक्षण के मामले में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे नागरिकों को अपने डिजिटल जीवन पर पहले से कहीं अधिक नियंत्रण प्राप्त होता है।