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विकसित राष्ट्र २०४७ का लक्ष्य: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि संविधान का अक्षरशः पालन क्यों है इस राष्ट्रीय स्वप्न को साकार करने की कुंजी

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संविधान दिवस के अवसर पर देश के नागरिकों को संबोधित करते हुए एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत तभी २०४७ तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल कर पाएगा, जब देश का प्रत्येक नागरिक और संस्था संविधान का अक्षरशः और उसकी मूल भावना के साथ पालन करेगी। बिरला ने जोर देकर कहा कि संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत है, और इसका ईमानदारी से पालन करना राष्ट्र निर्माण की दिशा में पहला कदम है।


ओम बिरला ने अपने संबोधन में कहा कि संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को न केवल अधिकार दिए हैं, बल्कि उन्हें मौलिक कर्तव्यों की जिम्मेदारी भी सौंपी है। उन्होंने कहा कि एक मजबूत और जीवंत लोकतंत्र के लिए, यह आवश्यक है कि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जितने जागरूक हैं, उतने ही वे अपने कर्तव्यों के प्रति भी प्रतिबद्ध हों। बिरला ने इस बात पर जोर दिया कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता, जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सभी संवैधानिक संस्थाओं को मिलकर काम करना चाहिए और अपने अपने अधिकार क्षेत्र का सम्मान करना चाहिए।


उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है और २०४७ तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। बिरला ने कहा कि यह लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन किया जाए। उन्होंने राजनीति से परे हटकर, राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने और जन कल्याणकारी नीतियों को लागू करने के लिए संविधान की मूल भावना को समझने की आवश्यकता पर बल दिया।


लोकसभा अध्यक्ष ने देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन और सहयोग के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संविधान ने सभी स्तंभों के लिए स्पष्ट भूमिकाएं निर्धारित की हैं, और इन भूमिकाओं का सम्मान करना ही लोकतंत्र की मजबूती का आधार है। बिरला के अनुसार, अगर सभी संस्थाएं अपनी सीमाओं में रहकर, संविधान द्वारा निर्देशित उद्देश्य की पूर्ति के लिए काम करती हैं, तो हम निश्चित रूप से २०४७ के लक्ष्य को समय से पहले प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने राजनीतिक दलों से भी अपील की कि वे देश के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए संवैधानिक ढांचे के भीतर काम करें।


ओम बिरला का यह आह्वान स्पष्ट करता है कि विकसित भारत का सपना केवल आर्थिक विकास पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह देश के प्रत्येक नागरिक की संवैधानिक मूल्यों के प्रति नैतिक प्रतिबद्धता पर आधारित है। संविधान के प्रति ईमानदारी ही भारत को एक मजबूत, समावेशी और विकसित राष्ट्र बनाने की कुंजी है, और इस संदेश को देश के कोने कोने तक पहुँचाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।