उत्तराखंड में पेपर लीक पर छात्रों का आक्रोश: आयोग ने गड़बड़ी से इनकार किया, लेकिन सबूत दे रहे हैं दूसरी कहानी
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा आयोजित एक परीक्षा में पेपर लीक के आरोपों के बाद, राज्य भर के छात्र सड़कों पर उतर आए हैं। यह आरोप है कि परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे के भीतर ही प्रश्नपत्र के स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर शेयर किए गए थे, जिससे परीक्षा की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। छात्रों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब यूकेएसएसएससी की किसी परीक्षा में गड़बड़ी हुई है, और वे निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं।
यह घटना तब सामने आई जब परीक्षा में बैठे कुछ छात्रों ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे प्रश्नपत्रों के स्क्रीनशॉट देखे। इन स्क्रीनशॉट्स की टाइमस्टैम्प से पता चला कि वे परीक्षा शुरू होने के कुछ ही देर बाद लिए गए थे। छात्रों ने तुरंत इस मामले की शिकायत आयोग और स्थानीय प्रशासन से की, लेकिन शुरुआती तौर पर उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया। इसके बाद, आक्रोशित छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया। देहरादून, हल्द्वानी, और रुद्रपुर जैसे शहरों में छात्रों ने मार्च निकालकर और धरने पर बैठकर अपनी आवाज उठाई।
छात्रों का मुख्य आरोप है कि यूकेएसएसएससी और सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उनका कहना है कि हर बार पेपर लीक या गड़बड़ी के बाद आयोग सिर्फ औपचारिक जांच का आश्वासन देता है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। इससे उन हजारों मेहनती छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ जाता है जो कई सालों से सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी छात्रों ने मांग की है कि इस परीक्षा को तुरंत रद्द किया जाए और पेपर लीक में शामिल सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
दूसरी ओर, यूकेएसएसएससी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है। आयोग के अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे स्क्रीनशॉट की जांच की जा रही है, लेकिन प्रथम दृष्टया इसमें कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है। उनका दावा है कि परीक्षा पूरी तरह से पारदर्शी और सुरक्षित तरीके से आयोजित की गई थी। हालांकि, आयोग का यह बयान छात्रों के गुस्से को और भड़का रहा है, जो इसे आयोग की लापरवाही और छात्रों के भविष्य के प्रति उदासीनता मान रहे हैं।
यह घटना उत्तराखंड में बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता की कमी के बड़े मुद्दे को उजागर करती है। छात्र संगठनों का कहना है कि जब तक भर्ती प्रक्रियाओं को पूरी तरह से पारदर्शी नहीं बनाया जाएगा, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। वे एक स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच कराने की मांग कर रहे हैं ताकि दोषियों का पता लगाया जा सके और उन्हें सजा मिल सके। इस पूरे मामले ने एक बार फिर से सरकारी भर्ती परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया है।