आरबीआई के सामने दोहरी चुनौती: थोक महंगाई और आर्थिक विकास के बीच संतुलन
अगस्त महीने में भारत की थोक महंगाई दर (Wholesale Price Index - WPI) बढ़कर 0.52% पर पहुंच गई है। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, क्योंकि इससे पहले जुलाई में यह दर माइनस 0.58% थी। यह उछाल मुख्य रूप से खाने-पीने के सामान की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण हुआ है। WPI, जो थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को मापता है, यह दर्शाता है कि उत्पादकों के लिए लागत बढ़ रही है, जिसका असर अंततः खुदरा कीमतों पर भी दिख सकता है।
थोक महंगाई में हुई इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण सब्जियों, दालों और मसालों जैसी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आया उछाल है। मानसून की अनियमितता और कुछ क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थितियों ने आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया है, जिससे खाद्य पदार्थों की लागत बढ़ गई है। इसका सीधा असर खुदरा महंगाई पर भी पड़ने की आशंका है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी और कुछ विनिर्मित उत्पादों की बढ़ती लागत ने भी थोक महंगाई को ऊपर धकेलने में योगदान दिया है। यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि यह महंगाई के दबाव को फिर से बढ़ा सकती है।
थोक महंगाई में अचानक आया यह उछाल भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए भी एक चुनौती पेश कर सकता है। RBI अपनी मौद्रिक नीति तय करते समय थोक और खुदरा दोनों महंगाई दरों पर नजर रखता है। चूंकि खुदरा महंगाई (CPI) दर पर भी दबाव पड़ने की उम्मीद है, इसलिए RBI के लिए ब्याज दरों में कटौती का फैसला लेना मुश्किल हो सकता है। अगर खुदरा महंगाई बढ़ती है, तो RBI को कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अपनी दरों को स्थिर रखना या यहां तक कि बढ़ाना पड़ सकता है, जिससे कर्ज महंगा होगा और आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।
यह डेटा अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। अगर कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहती है, तो इसका असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा। हालांकि, यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि WPI का सीधा असर हमेशा CPI पर नहीं पड़ता है, लेकिन एक प्रवृत्ति के रूप में यह भविष्य के संकेत देता है। सरकार और RBI दोनों को इस डेटा पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत होगी ताकि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए समय पर आवश्यक कदम उठाए जा सकें।