शिवराज पाटिल: हमेशा सजे-धजे रहने वाले गृह मंत्री, जिन्हें 26/11 ने पद से हटने पर मजबूर किया
शिवराज पाटिल भारतीय राजनीति के उन चेहरों में से एक हैं जो अपने संतुलित व्यक्तित्व, शांत स्वभाव और हमेशा सजे-धजे रहने की आदत के लिए जाने जाते रहे। हालांकि उनका करियर जितना लंबा और प्रभावशाली रहा, उतना ही विवादास्पद मोड़ उन्हें 2008 के मुंबई आतंकी हमले यानी 26/11 के बाद झेलना पड़ा। यह वही घटना थी जिसने उन्हें देश के गृह मंत्री पद से इस्तीफा देने पर मजबूर किया और जिसे लोग आज भी एक बड़े राजनीतिक मोड़ के रूप में याद करते हैं।
शिवराज पाटिल, कांग्रेस के अनुभवी नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष, 2004 में यूपीए सरकार के गठन के बाद गृह मंत्री बनाए गए थे। उस समय उनकी छवि एक शांत, सुसंस्कृत और प्रशासनिक तौर पर व्यवस्थित नेता की थी। सरकार के भीतर भी उन्हें एक भरोसेमंद चेहरा माना जाता था। मगर 2008 आते-आते कई सुरक्षा चूक और लगातार आतंकी घटनाओं ने उनकी छवि पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
फिर आया 26 नवंबर 2008 का वह काला दिन, जब दस पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला कर दिया। ताज होटल, ओबेरॉय, नरीमन हाउस और CST स्टेशन जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर हुए हमलों में दर्जनों निर्दोष लोग मारे गए। पूरा देश सदमे में था और उसी दौरान गृह मंत्रालय की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे। कहा गया कि खुफिया चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया गया और सुरक्षा तंत्र हमले को रोकने में असफल रहा।
इस सबके बीच शिवराज पाटिल पर एक और विवाद ने आग में घी डालने का काम किया। मीडिया में यह रिपोर्ट सामने आई कि वे एक ही दिन में कई बार कपड़े बदलते दिखे, जबकि देश में भय और अराजकता का माहौल था। आम जनता और विपक्ष के बीच यह प्रतीक बन गया कि नेतृत्व संकट के समय अनावश्यक दिखावे में उलझा हुआ था। हालांकि यह आरोप उनकी कार्यशैली का पूरा चित्र नहीं दिखाता, लेकिन उस समय देश में गुस्से का माहौल ऐसा था कि यह मामला बेहद बड़ा बन गया।
राजनीतिक दबाव बढ़ने लगा और आखिरकार 30 नवंबर 2008 को शिवराज पाटिल ने गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा न सिर्फ सरकार की जवाबदेही का संकेत था, बल्कि यह एक ऐसे दौर का अंत भी था जिसमें सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ बढ़ रही थीं और सरकार के सामने साख बनाए रखने की चुनौती थी। उनकी जगह बाद में पी. चिदंबरम को गृह मंत्री बनाया गया, जिन्होंने मंत्रालय में कई संरचनात्मक सुधार किए।
शिवराज पाटिल का करियर केवल 26/11 की वजह से परिभाषित नहीं होता। उन्होंने वर्षों तक संसद, सरकार और संगठन में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल बेहद सम्मानजनक रहा और कांग्रेस पार्टी में उनकी स्वीकार्यता हमेशा बनी रही। लेकिन यह भी सच है कि 26/11 के हमले ने उनके राजनीतिक सफर पर एक अमिट छाप छोड़ दी, जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा।
आज जब 26/11 की चर्चा होती है, तो सुरक्षा तंत्र की विफलताओं के साथ-साथ उस राजनीतिक नेतृत्व की भी बात होती है जिसे उस समय कठिन फैसले लेने पड़े। शिवराज पाटिल का इस्तीफा उसी दौर का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें यह याद दिलाता है कि सत्ता के उच्चतम पद भी जवाबदेही से मुक्त नहीं होते।